अब कहने को कुछ
नही करता है मन....
क्योंकि .....
गुजर रहा है ...
परेशानियों से मेरा साजन.....
कुछ ऐसा दस्तूर है ....
इस जमाने के बनाये दस्तूर का....
की हम नही जा सकते
उनके पास ....
ये कैसे के दस्तूर..है...
और किसका....
बनाया हुआ है ये रीत और रिवाज....
जो है मेरे दिल के सबसे करीब ....
वो ही है सबसे दूर आज...
जिनके लिए जीने का करता है मन...
उनसे ही नही मिल सकता हूँ ......
मैं आज......
-नीरवता
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अरुण जी..आपकी रचना दिल को छू गई..पढ़ते वक्त ऐसा लगा जैसे कि हम अपने दिल से अपनी बात कह रहे हैं...बस यही तो जिंदगी है।कभी कभी जो चाहते हैं वो मिलता नहीं...और कभी कभी बिना चाहे मिल जाता है।।।। और कभी कभी ऐसा होता है जो नहीं चाहते वही मिल जाता है....
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