जिंदगी की शाख से
जो गिर चुकी
उन टहनियों का
बूढ़ी पुरानी पत्तियों का
हम सोग आखिर क्यों
करें जिंदगी की राह से
जो मुड़ गए
उन दूर जाते रास्तों का
बिछुडे हुए कुछ दोस्तों का
आख़िर ख़याल क्यों करें
हम तो मुसाफिर हैं
के चलना है हमारी ज़िन्दगी
पैरों के छालों का
बहते किनारों का
उड़ते गुबारों का
कुछ भी मलाल
क्योँ करें
-नीरवता
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Kya ham apne mata pita, dada daadee ko yaad nahee karte? Aisee yaden to hamaree dharohar bantee hain..rahnuma bantee hain!
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